Saturday, October 12, 2024

दीपावली कब है

 


 "दीपावली कब है: वर्ष 2024 में "

प्रस्तावना:

भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व है।यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जिसका महत्वपूर्ण स्थान हिन्दू परंपराओं में है। इन त्योहारों के माध्यम से हम अपने सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रूप में देखते हैं और उन्हें समृद्धि, समानता और आनंद का प्रतीक मानते हैं।भारतीय संस्कृति विविधता, समृद्धि और धार्मिकता का संगम है इनमें से एक महत्वपूर्ण त्योहार है - 'दीपावली'। यह त्योहार हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है और इसका मतलब होता है कि इसे 'कार्तिक अमावस्या' के दिन मनाया जाएगा। इस ब्लॉग आर्टिकल में, हम जानेंगे कि वर्ष 2024में दीपावली की तिथि क्या है, इसके महत्व क्या है और इसे कैसे मनाया जा सकता है।

दीपावली की तिथि 2024:

31 अक्टूबर 2024 को अमावस्या शुरू होकर 1 नवंबर 2024 तक रहेगी, और इसी कारण दीपावली का मान 31 अक्टूबर 2024 को किया जा रहा है। यह विशेष जानकारी त्योहार के सही दिन और शुभ मुहूर्त के निर्धारण के लिए महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि दीपावली पर लक्ष्मी पूजन और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का समय अमावस्या के अनुसार तय होता है।।

दीपावली का महत्व:

दीपावली को 'दीपोत्सव' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है 'दीपों की महोत्सव'। यह त्योहार धर्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और यह भारतीय समाज में एकता, शांति और सहयोग की भावना को प्रकट करता है। दीपावली का यह महत्व विभिन्न कथाओं और परंपराओं से जुड़ा हुआ है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दीपावली का यह दिन भगवान श्रीराम ने अयोध्या वापस आने पर लोगों ने उनके आगमन के लिए दीपों से जगमग कर दिया था। इसके साथ ही, देवी लक्ष्मी के आगमन का भी यह दिन माना जाता है। लोग मानते हैं कि इस दिन देवी लक्ष्मी अपनी विशेष कृपा बरसाती हैं और घरों में समृद्धि और धन की वर्षा करती हैं।

दीपावली का मनाने का तरीका:

दीपावली के त्योहार को खासी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार खुद अपनी रंगीनीता, धूमधाम और उत्साह से भरपूर होता है।दीपावली के दिन, परिवार और दोस्त एक साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं। घरों को सजाकर उन्हें एक आनंददायक माहौल मिलता है और यह समय आपसी मिलन-जुलन के लिए भी एक अद्वितीय मौका प्रदान करता है।

1. घर सजाना और सजाने की प्रक्रिया: दीपावली से पहले लोग अपने घरों की सजावट करते हैं। घर को सजाने में खासकर रंगों, फूलों और दीपों का उपयोग किया जाता है। घर के इंटीरियर और एक्स्टीरियर को रंगीन और आकर्षक बनाने का प्रयास किया जाता है।

2. दीपों की रौशनी: दीपावली का मुख्य आकर्षण दीपों की रौशनी होती है। लोग अपने घरों में मिलकर दीपों को जलाते हैं, जिससे घर का माहौल शान्तिपूर्ण और उत्साहित होता है।

3. पूजा और अर्चना: दीपावली के दिन लोग धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। इसके साथ ही, विभिन्न धार्मिक रितुअल्स और पूजा-पाठ की जाती है।

4. खानपान: दीपावली के दिन लोग विशेष तरीके से पकवान बनाते हैं और खानपान का आनंद लेते हैं। घरों में मिठाइयों की बड़ी विविधता बनती है और लोग आपसी मिलन-जुलन का आनंद लेते हैं।

5. आत्म-परिशर्म: दीपावली के दिन लोग आपसी बुराईयों को छोड़कर नई शुरुआत करने का आलंब बनाते हैं। यह एक नए संकल्प लेने का भी मौका होता है और लोग आगामी वर्ष में अधिक सकारात्मक बदलाव लाने का प्रतिबद्ध रहते हैं।

दीपावली का अर्थ और महत्व:

दीपावली का अर्थ होता है 'दीपों की पंक्ति' या 'दीपों की माला'। यह त्योहार प्रकाश की ओर जाने का संकेत होता है और भारतीय संस्कृति में ज्ञान की ऊर्जा को प्रकट करता है। इसके पीछे कई कथाएं और धार्मिक आदर्श हैं, जिनसे इसका महत्व समझा जा सकता है।दिवाली विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों को चिह्नित करने के लिए हिंदू, जैन और सिखों द्वारा मनाई जाती है, लेकिन ये सभी बुराई पर अच्छाई, अंधेरे पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की जीत का प्रतिनिधित्व करते हैं। योग, वेदांत और सांख्य के हिंदू दर्शन का मानना है कि भौतिक शरीर और मन से परे कुछ ऐसा है जो शुद्ध, अनंत और शाश्वत है जिसे आत्मा या आत्मा कहा जाता है। दिवाली आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है।

इतिहास की नज़र में दीपावली:

दीपावली का इतिहास साम्राज्य, धर्म, और संस्कृति के बीच के मिलनसार घटनाओं से भरपूर है। इसका विशेष महत्व महाभारत और रामायण जैसी महाकाव्यिक ग्रंथों में भी प्रकट होता है।

1. दीपावली और महाभारत: महाभारत में, दीपावली का उल्लेख कर्ण पर्व में होता है, जहां भगवान कृष्ण ने पांडवों को यह त्योहार समझाया था कि वे दीपों की रौशनी से कुछ दिन तक अपनी प्रजा की खुशियाँ और सुख-शांति का संकेत दे सकेंगे।

2. दीपावली और भगवान श्रीराम: रामायण के अनुसार, दीपावली भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने के दिन मनाई गई थी। रामचंद्र जी के अयोध्या वापसी पर जनता ने उनके स्वागत के लिए दीपों की रौशनी से शहर को आलंबित किया था।

दीपावली का समकालीन महत्व:

आजकल, दीपावली एक विशेष रूप से समाज की भाईचारे की भावना को प्रकट करने का माध्यम बन चुका है। इसके अलावा, यह धार्मिकता, समर्पण, और दृढ़ निश्चय की प्रतीक है।

1. परिवार और दोस्तों के साथ आनंद: दीपावली के दिन, परिवार और दोस्त एक साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं। घरों को सजाकर उन्हें एक आनंददायक माहौल मिलता है और यह समय आपसी मिलन-जुलन के लिए भी एक अद्वितीय मौका प्रदान करता है।

2. धार्मिकता की महत्वपूर्णियाँ: दीपावली के दिन, लोग भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। यह उनके जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि, और शुभकामनाएँ लाता है।

समापन:

दीपावली एक ऐसा त्योहार है जिसका महत्व न केवल धार्मिकता में है, बल्कि यह समृद्धि, सद्गुण, और एकता की प्रतीक भी है। इसके चमकते हुए इतिहास ने हमें यह सिखाया है कि प्रकाश के बिना अंधेरा नहीं हो सकता और सद्गुणों की रौशनी हमेशा ऊर्जा का स्रोत बनी रहती है। इस दीपावली, हमें न केवल दीपों की रौशनी में बल्कि अपने जीवन को भी एक सकारात्मक दिशा में प्रकट करने का संकल्प लेना चाहिए।

 

Sunday, September 8, 2024

REBIRTH AFTER DEATH

 

UNIQUE STORY OF REBIRTH AFTER DEATH


 

 A boy was born in Khedi Alipur village in Muzaffarnagar district (Uttar Pradesh), India, parents named their child Veerasingh. , When this boy was three and a half years old,  Veerasingh remembered the things of his previous birth. Veerasingh told that in his previous birth he was the son of Pt. Lakshmi Chand ji of Shikarpur. People used to call him by the name of Somdutt. 


 

After returning the memory of the previous birth, Veer Singh did not want to live with his parents of this birth. Veer Singh repeatedly insisted on going to the parents of his former birth. People were surprised to hear Veer Singh's words. 

This incident spread like wildfire, and it also reached the ears of Pandit Lakshmichand ji of Shikarpur, who was the father of Veerasingh's previous birth. Laxmichand reached Alipore to find out the truth. Memories of child's past life The child Veerasingh was taken to Lakshmichand. As soon as the child saw Laxmichand ji, father called him and hugged him. 


 

Everyone present was surprised to see this scene. Laxmichand ji got emotional after meeting his last-born child and tears came out of his eyes. Veerasingh was brought to his former birth home. Here, apart from his mother and sisters, he also identified the brothers who were born after Somdutt's death. People were more surprised wondering how Somdutt could identify the brothers whom he had not seen in his previous birth. While answering all kinds of questions from all the people, Veerasingh said that he remembered the issue of rebirth when his former birth mother passed away in front of him while playing. 

Veerasingh told the people that when he died he could not find any body. And he lived as a phantom on a peepal tree near the house of his former birth for nine years. When he felt thirsty, he would go to the well and drink water and when he was hungry, he used to go to the kitchen and eat bread. He saw his brothers in a phantom form who were born after his death. Veersingh gave the right answers to all the questions of his previous birth relationship, all the people of his village from far and wide. After that his former birth relatives and relatives of this birth, and the people of the society did not accept that Somdutt He is reborn as Veer Singh. 

 But now that the child will be with him, he insisted that if I would stay with my parents of the previous birth, then in front of his insistence, the parents of this birth gave him to the parents of the previous birth, but both his mother Remained with the father and found love and affection of both, this story became the subject of much discussion in the newspapers of that time. This is a unique phenomenon in parapsychology, which is mentioned in a book called Truth and Reincarnation of Truth, published by GitaPress, a well-known media in India (provocative region). This incident is 65 years old from today. In truth, such incidents prove the principle that the soul is immortal.

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Sunday, August 4, 2024

पुनर जनम की अनोखी कहानी/REBIRTH AFTER DEATH

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मरने के बाद पुनर  जनम की अनोखी कहानी


मुजफ्फरनगर जिला (उत्तर  प्रदेश ) इंडिया  के एक गांव खेड़ी अलीपुर  गांव में एक लड़के का जन्म हुआ, माता-पिता ने अपने इस बालक का नाम वीरसिंह रखा। , जब यह लड़का साढ़े तीन साल का हुआ तो  वीरसिंह को अपने  पूर्वजन्म की बातें याद आ गई थी। वीरसिंह ने बताया कि पूर्वजन्म में वह शिकारपुर के पं. लक्ष्मीचन्द जी बेटा था लोग उसे सोमदत्त के नाम से बुलाते  थे।

 पूर्वजन्म की स्मृति लौट आने के बाद वीरसिंह अपने इस जन्म के माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहता था। वीरसिंह बार-बार अपने पूर्वजन्म के माता-पिता के पास जाने की जिद्द करता।

लोग वीरसिंह की बातें सुनकर हैरान थे। ये घटना जंगल के आग की तरह फ़ैल गयी , आग फैलते फैलते  शिकारपुर के पं.लक्ष्मीचंद जी कानों में भी पहुंची जो वीरसिंह के पूर्वजन्म के पिता थे। लक्ष्मीचंद  सच्चाई जानने के लिए अलीपुर पहुंच गए।

बच्चे के  पूर्वजन्म की यादें

बच्चे  वीरसिंह को लक्ष्मीचंद के पास ले जाया गया । बालक ने जैसे ही  लक्ष्मीचंद जी को देखा पिता जी कहते हुए उनसे लिपट गया। मौजूद सभी लोग इस दृश्य को देखकर आश्चर्य चकित हो गए । लक्ष्मीचंद जी अपने पूर्वजन्म के बच्चे  से मिलकर भावुक हो उठे और उनके आंखों से आंसू बह निकले।

वीरसिंह को अपने पूर्वजन्म के घर पर लाया गया। यहां उसने अपनी मां और बहनों के अतिरिक्त  उन भाईयों को भी पहचान लिया जिनका जन्म सोमदत्त के मरने के बाद हुआ था। लोग ये सोच कर   ज्यादा हैरान थे कि  सोमदत्त उन भाइयों को कैसे पहचान सकता है  जिसे उसने पूर्वजन्म में देखा ही नहीं था।


वीरसिंह ने सब लोगों के हर तरह के प्रश्नो के उत्तर देते हुवे बताया की उसे पुनर्जन्म की बात उस समय याद आयी जब खेलते समय उसके पूर्व जनम की माँ उसके सामने से गुजरी क्यों मरने के बाद होने वाली घटना याद थी

वीरसिंह ने लोगों को बताया कि जब उसकी मृत्यु हो गई थी तो उसे कोई शरीर नहीं मिला। और  वह अपने पूर्वजन्म के घर के पास एक पीपल के पेड़ पर नौ साल तक प्रेत के रूप में  रहा। जब उसे प्यास लगती थी  तो वो कुएं में जाकर पानी पी लेता और जब  भूख लगती थी तो रसोई में जाकर रोटी खा लेता था।

 प्रेत रुप में ही उसने अपने उन भाईयों को देखा था जिनका जन्म उसकी मृत्यु के बाद हुआ था। वीरसिंह ने अपने पूर्वजन्म के सारे रिश्ते दारों ,सारे दूर दूर के उसके गाँव के लोगो के हर तरह के सवालों के सही जवाब दिए उसके बाद उसके पूर्व जन्म के रिश्तेदारों और इस जन्म के रिश्तेदारों, और समाज के लोगों  ने मान   लिया की सोमदत्त ने ही वीरसिंह के रूप में पुनर्जन्म लिया है ।

लेकिन अब ये हुवा की बच्चा किसके साथ रहेगा वो तो जिद करने लगा की मै अपने पूवजन्म के माँ बाप के साथ ही रहूंगा तो उसके जिद के आगे इस जन्म के माँ बाप ने उसको पूर्वजन्म के माँ बाप को सौप दिया लेकिन उसका रिस्ता दोनों ही माँ बाप के साथ बना रहा और दोनों का प्यार  और स्नेह मिला , उस समय के समाचार पत्रों में ये कहानी खूब चर्चा  का विशय बना

यह परामनोविज्ञान की एक अदभुद  घटना है जिसका उल्लेख भारत  (उत्तेर प्रदेश ) के एक प्रसिद्ध मीडिया गीताप्रेस द्वारा प्रकाशित परलोक और पुनर्जन्म की सत्य घटनाएं नामक पुस्तक में किया गया है । यह घटना आज से 65 साल पुरानी है।बैल पोला त्यौहार

 सच में इस तरह की घटनाये आत्मा अमर है के सिद्धांत को सिद्ध करती है 

 

🉐  THANK YOU 🉐

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