वस्तुओं का नाश शस्त्र आदि अथवा प्रकृति के नाश के साधनों अग्नि जल और वायु के द्वारा संभव है। इनमें से किसी भी साधन से आत्मा का नाश नहीं किया जा सकता।
स्थूल साधन अपने से सूक्ष्म वस्तु का नाश नहीं कर सकता ।
इसलिये स्वाभाविक ही है कि आत्मा जो कि सूक्ष्मतम तत्त्व आकाश से भी
सूक्ष्म है का नाश शस्त्रों से नहीं हो सकता।
अग्नि जला नहीं सकती अग्नि अपने से भिन्न वस्तुओं को जला
सकती है परन्तु वह स्वयं को ही कभी नहीं जला सकती। ज्वलन अग्नि का धर्म है
और अपने धर्म का अपने सत्य स्वरूप का वह नाश नहीं कर सकती
जल गीला नहीं कर सकता पूर्व वर्णित सिद्धांत के अनुसार
ही हम यह भी समझ सकते हैं कि जल आत्मा को आर्द्र या गीला नहीं कर सकता और न
उसे डुबो सकता है। ये दोनों ही किसी द्रव्य युक्त
साकार वस्तु के लिये
संभव हैं और न कि सर्वव्यापी निराकार आत्मतत्व के लिये।
वायु सुखा नहीं सकती जो वस्तु गीली होती है उसी का शोषण
करके उसे शुष्क बनाया जा सकता है। आजकल सब्जियाँ और खाद्य पदार्थों के जल
सुखाकर सुरक्षित रखने के अनेक साधन उपलब्ध हैं। परन्तु आत्मतत्त्व में जल
का कोई अंश ही नहीं है क्योंकि वह अद्वैत स्वरूप है तब वायु के द्वारा
शोषित होकर उसके नाश की कोई संभावना नहीं रह जाती।
आत्मा अपने विचार, भाव और कर्म अनुसार शरीर धारण करता है। अच्छे कर्म से
अच्छे की और बुरे से बुरे की उत्पत्ति होती है। जन्म-मरण का सांसारिक चक्र
लाखों योनियों में चलता रहता है जो तभी खत्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष
मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक शुद्ध स्वभाव को पा लेती है। इस
शुद्ध स्वभाव को सत्-चित्-आनन्द तुल्य कहते हैं।
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