पोला त्यौहार का महत्व
भारत, जहां कृषि आय का मुख्य स्रोत है और ज्यादातर किसान खेती के लिए बैलों का प्रयोग करते है. इसलिए किसान पशुओं की पूजा आराधना एवं उनको धन्यवाद देने के लिए इस त्योहार को मनाते है.
पोला दो तरह से मनाया जाता है, बड़ा पोला एवं छोटा पोला. बड़ा पोला में बैल
को सजाकर उसकी पूजा की जाती है, जबकि छोटा पोला में बच्चे खिलौने के बैल या घोड़े को
मोहल्ले पड़ोस में घर-घर ले जाते है और फिर लोग उन्हें कुछ पैसे या गिफ्ट देते है आधुनिक अयोध्या
पोला त्यौहार का नाम पोला पड़ने का कारण
विष्णु भगवान जब कान्हा के अवतार रूप में धरती में आये थे, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप मे मनाया जाता है. तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे. कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहाँ रहते थे, तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था. एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था, इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला से मारकर सबको अचंभित कर दिया था. वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा. यह दिन बच्चों का दिन कहा जाता है, इस दिन बच्चों को विशेष प्यार, लाढ दिया है.
महाराष्ट्र में पोला पर्व मनाने का तरीका
पोला के पहले दिन किसान अपनी बैलों के गले, एवं मुहं से रस्सी निकाल देते है.
• उन्हें हल्दी, बेसन का लेप लगाते है, तेल से उनकी मालिश करते है.
• इसके बाद उन्हें गर्म पानी से नहलाया जाता है. अगर पास में नदी, तालाब होता है तो उन्हें वहां ले जाकर नहलाया जाता है.
• इसके बाद उन्हें बाजरा से बनी खिचड़ी दी जाती है.
• इसके बाद बैल के सींग को कलर आदि करके अच्छे से सजाया जाता है.
• उन्हें रंगबिरंगे कपड़े पहनाये जाते है, तरह तरह के जेवर, फूलों की माला आदि पहनाया जाता है.
• इन सब के साथ साथ घर परिवार के सभी लोग नाच, गाना आदि करते रहते है.
• इस दिन का मुख्य उद्देश्य ये है कि बैलों के सींग में बंधी पुरानी रस्सी को बदलकर, नए तरीके से बांधा जाता है.
• गाँव के सभी लोग एक जगह इक्कठे होते है, और अपने अपने पशुओं को सजाकर लाते है. इस दिन सबको अपनी बैलों को दिखाने का मौका मिलता है.
• फिर इन सबकी पूजा करके, पुरे गाँव में ढोल नगाड़े के साथ इनका जुलुस निकाला जाता है.
• इस दिन घर में विशेष तरह के पकवान बनते है, इस दिन पूरम पोली, गुझिया, वेजीटेबल करी एवं पांच तरह की सब्जी मिलाकर मिक्स सब्जी बनाई जाती है.
• कई किसान इस दिन से अपनी अगली खेती की शुरुवात करते है.
• कई जगह इस दिन मेले भी लगाये जाते है, जहाँ तरह तरह की प्रतियोगितायें जैसे वॉलीबॉल, रेसलिंग, कबड्डी, खो-खो आदि.आयोजित की जाती है
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में पोला त्यौहार मनाने का तरीका
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में कई तरह की आदिवासी जन जातियां रहती हैं यहाँ के गाँव में पोला के त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. यहाँ सचमुच के बैल की जगह लकड़ी एवं लोहे के बैल की पूजा की जाती है, बैल के अलावा यहाँ लकड़ी, पीतल के घोड़े की भी पूजा की जाती है.
• इस दिन घोड़े, बैल के साथ साथ चक्की (हाथ से चलाने वाली चक्की) की भी पूजा की जाती है.
• तरह तरह के पकवान इनको चढ़ाये जाते है, सेव, गुझिया, मीठे खुरमे आदि बनांये जाते है.
• घोड़े के उपर थैली रखकर उसमें ये पकवान रखे जाते है.
• फिर अगले दिन सुबह से ये घोड़े, बैल को लेकर बच्चे मोहल्ले पड़ोस में घर – घर जाते है, और सबसे उपहार के तौर में पैसे आदि लेते है.
• इसके अलावा पोला के दिन मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में गेड़ी का जुलुस निकाला जाता है. गेड़ी, बांस से बनाया जाता है, जिसमें एक लम्बा बांस में नीचे 1-2 फीट उपर आड़ा करके छोटा बांस लगाया जाता है. फिर इस पर बैलेंस करके, खड़े होकर चला जाता है. गेड़ी कई साइज़ की बनती है . ये एक तरह का खेल है, जो मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ का एक पारंपरिक खेल है.
पोला का त्यौहार इंसानो को जानवरों के प्रति सम्मान करना सिखाता है. जैसे जैसे ये त्यौहार आने लगता है, सभी लोग एक दुसरे को हैप्पी पोला कहकर मुबारकबाद देने लगते है
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